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*उत्तराखंड ” पहाड़ों पर होने वाले पलायन के दर्द को बयां करती फिल्म*

ब्यूरो रिपब्लिक न्यूज़ 18 उत्तराखंड) हरिद्वार
उत्तराखंड के पहाड़ों में होने वाले पलायन के दर्द को बयां करती दिल छू लेने वाली फिल्म तिकड़म। नैनीताल, मुक्तेश्वर और मुंबई में एक-एक दृश्य को छोड़कर बाकी सारी शूटिंग खुर्पाताल में हुई।
उत्तराखंड लाइन प्रोड्यूसर संजीव मेहता (मोहन्स फिल्म प्रोडक्शंस, हरिद्वार) और उनकी टीम में शामिल साहिल मेहता और विनय बिस्ट ने सभी प्रतिभाशाली स्थानीय पात्रों, सुंदर स्थानों, व्यवस्थाओं और लॉजिस्टिक्स के साथ सर्वोत्तम संभव सहायता प्रदान करके कहानी में न्याय लाया है। हमारा खूबसूरत राज्य उत्तराखंड और खास तौर पर खुर्पाताल बहुत खूबसूरत दिखता है। जैसा पहले कभी नहीं देखा गया.
बर्फ गिराओ, पापा लाओ! तिकड़मी बच्चों की इमोशनल कहानी में अमित सियाल को पूरे नम्बर तिकड़म उन फिल्मों में शामिल है जिनकी कहानियों में एक मासूमियत और साफगोई की अंतर्धारा रहती है। इन्हें देखते हुए कभी चेहरे पर मुस्कान आती है तो कभी उदासी छा जाती है। सिचुएशंस से भावनात्मक जुड़ाव भी बांधकर रखता है। तिकड़म में अमित सियाल लीड रोल में हैं और इस बार उन्होंने ओटीटी की सारी नेगेटिविटी को धो दिया है।
पिता और बच्चों का भावुक बंधन
फिल्म की कहानी अनिमेश वर्मा की है, जबकि इसकी पटकथा और संवाद पंकज निहलानी और विवेक आंचलिया ने लिखे हैं। फिल्म की सबसे खूबसूरत बात इसकी सादगी ही है, जो बिना किसी शोरशराबे के बच्चों के जरिए अहम संदेश देती है। पिता और बच्चों के बीच के अटूट बंधन को भावनाओं की चाशनी में डूबोकर दिखाती है।
विवेक की यह पहली फीचर फिल्म हैं, उनकी पकड़ निर्देशन पर मजबूत है। कहीं भी उन्होंने फिल्म में बेवजह के लंबे और धीमे सीन नहीं रखे हैं। ना ही उन्होंने सुखताल (खुर्पाताल) में बर्फ गिरवाने के लिए कोई चमत्कार दिखाया है।
बर्फ इसलिए नहीं गिर रही है, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग बढ़ गई है। इसलिए पेड़ बचाओ, प्लास्टिक पर बैन, प्रदूषण पर रोक जैसे कई मुद्दों पर बच्चों से बात करते हुए फिल्म हल्के-फुल्के तरीके से आगे बढ़ जाती है। बच्चे केवल पिता को रोकने के लिए ही तिकड़म नहीं लगाते हैं, बल्कि पर्यावरण को बचाने के लिए भी कई तिकड़म लगाते हैं, जो देखने में मजेदार लगते हैं।
पिता कहता है कि चिड़िया खाना लाने के लिए बाहर जाती, वैसे मुझे भी जाना पड़ेगा। इस पर बच्चों का कहना कि चिड़िया हर रात वापस आती है, आप आओगे हर रात वापस? या चीनी का अपने पिता को कपड़े सूटकेस में रखने से रोकना… यह मासूमित से भरपूर दृश्य भावुक करते हैं।
अमित सियाल ने नेगेटिव छवि को किया दूर l अभिनय में अभिनेता अमित सियाल पूरे नंबर पाने के हकदार हैं। एकल पिता होने की जिम्मेदारियों, माता-पिता के अच्छे बेटे, पेशेवर जीवन में ईमानदार, हर रूप में वह फिट लगे हैं। उन्हें देखकर यकीन कर पाना कठिन है कि वह नेगेटिव भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं। तीनों बच्चे आरोही साउद, समय और दिव्यांश द्विवेदी छोटा पैकेट बड़ा धमाका हैं।
सख्त मां और दादी के रोल में नयन भट्ट का काम बेहतरीन हैं। दादू के रोल में अजीत सर्वोत्तम केलकर जंचते हैं। खासकर जब वह अपने पोते-पोती को कहानियां सुनाते-सुनाते जीवन की असली बातें समझा जाते हैं, उससे घर में बुजर्गों के होने की अहमियत समझ आती है।
खुर्पाताल की खूबसूरती को सिनेमैटोग्राफर पार्थ सयानी ने कैमरे में कैद करने में कोई कमी नहीं रखी है। “बादल के आगे चल जाकर झांके”, “चंदा के ऊपर एक झूला बांधे”…, “जिंदगी है ये खेल एक प्यारे”…, “क्या ना उठा ले चींटी जो झुंड हो साथ इकठ्ठा”… यह सभी गाने फिल्म की कहानी को न केवल दिलचस्प बनाते हैं, बल्कि बिना संवादों के केवल गीत के जरिए उसे आगे भी बढ़ाते हैं। कास्टिंग अमित खन्ना ने की है l
कुल मिलाकर… लंबे समय के बाद बच्चों के साथ पूरे परिवार के देखने के लिए कोई अच्छी फिल्म आई है।

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